मै सज के, सवर के, जब  घर से निकली  थी,
माँ भी बोली , तू आज खूबसूरत दिख रही हैं।

खूब हँसी-बोली थी  , मैं  सहेली के साथ जब,
वो भी बोली , तू आज खुश दिख रही है।


उस रात दामिनी के साथ जो हुआ, उसे चित्रित करना वाकई मुश्किल है, लेकिन आइए कोशिश करते हैं

कुछ ही दिन पहले बापू ने सपने दिखाए थे,
मेरी शादी के लिए बहुत सारे लाल जोड़े लाये थे।

भाई बोला था, तेरी शादी में शेरवानी पहनूँगा,
तुझे क्या चाहिये बता दे, मैं तेरे लिए भी पैसे जोड़ूंगा।

सबके सपने सहज मेरे चेहरे पे चमक रहे थे,
मुझे नहीं पता था मेरे अपने सेहर में दरिंदे भटक रहे थे।

स्कूल में थी तो भारतीय का पाढ़ पढ़ाया जाता था,
हर शख्स  को रिस्तेदार बताया जाता था।

गलती मेरी थी जो गुरु जी की बात को सच मान बैठी ,
इस बेहरुपीये समाज को अपना घर मान बैठी।

सुबह से तो घर में ही बैठी थी,
सोचा था शाम को घूम के आऊंगी।

मूड ठीक हो जायेगा ,
तो आज बापू के लिए अपने हाथो से गुलाब जामुन बनाऊँगी।

मुझे लोग ना जाने क्यों घूर रहे थे,
सहम गयी थी तोड़ी देर बाद- माँ उन लोग बहुत बुरे थे, माँ उन लोग बहुत बुरे थे।

डर गयी थी इसलिए शायद मैं तेज चल पड़ी-डर  गयी थी इसलिए  मैं तेज  चल पड़ी,
ऐसी ठोकर लगी, माँ में अपनी नजरो में गिर पड़ी।

इतना चीखा चिल्लाया सब व्यर्त हो गया ,
माँ तेरी बेटी के साथ भी आज अनर्त हो गया।

कमजोर मत समझना , मैं वाकई बहुत लड़ी थी,
दूर थे अपने लोग शायद , मैं वह अकेली पड़ी थी।

बचपन कितना अच्छा था लोग मुझे खिलाते थे ,
तू सबको डाट देती थी , जो भी मुझे रुलाते थे।

तू आज क्यों नहीं आयी माँ ,उन लोगो ने मुझे बहुत घसीटा,
फाड़ दिए मेरे सारे कपड़े ,ऊपर से मुझे बहुत पीटा।

टूट गयी मैं , इस दरींदायी के जाल से
आखिरी ख़त लिख रही हूँ माँ – रखना तू सम्हाल के. …. रखना तू सम्हाल के।

कवि शैलेश सिंह राजपूत

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