बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी प्रदर्शन और हिंसक झड़पों के बीच सोमवार को तख्तापलट हो गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया और राजधानी ढाका छोड़ दिया । सेना प्रमुख वकर-उज़-ज़मान ने राष्ट्र के नाम एक टेलीविजन संदेश में कहा कि सेना अंतरिम सरकार बनाएगी। हसीना अपनी बहन शेख रेहाना के साथ देश छोड़कर भारत में शरण ली है। बांग्लादेश की सड़कों पर रविवार को भीषण झड़पें हुईं,तथा काई लोगो की जान जा चुकी है।
ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों की पुलिस और सत्तारूढ़ अवामी लीग समर्थित छात्र संगठन से झड़प हो गई। आंदोलन कर रहे छात्र सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को मिलने वाले 30 फीसदी आरक्षण का विरोध कर रहे थे।
मामले ने तब और तूल पकड़ा जब प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अदालती कार्यवाही का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारियों की मांगों को मानने से इनकार कर दिया। सरकार के इस कदम से छात्रों ने अपना विरोध तेज कर दिया। प्रधानमंत्री हसीना ने प्रदर्शनकारियों को ‘रजाकार’ कह कर सम्बोधित किया। 14 जुलाई को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब प्रधानमंत्री से छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा, ‘यदि स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों को कोटा नहीं मिलता है, तो किसे मिलेगा? रजाकारों के पोते-पोतियों को?’ बांग्लादेश के संदर्भ में रजाकार उन्हें कहा जाता है जिन पर 1971 में देश के साथ विश्वासघात करके पाकिस्तानी सेना का साथ देने के आरोप लगा था।
1975 के सैन्य विद्रोह में क्या हुआ था शेख़ हसीना के पिता के साथ?
शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के नायक और पहले राष्ट्रपति थे। हालांकि, 15 अगस्त 1975 को, एक सैन्य विद्रोह के दौरान, उन्हें और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या कर दी गई थी।
1975 में, बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और असंतोष बढ़ रहा था। इसी असंतोष के चलते एक समूह ने, जिसमें बांग्लादेश सेना के कुछ अधिकारी शामिल थे, एक षड्यंत्र रचा और 15 अगस्त 1975 की रात को शेख मुजीबुर रहमान के घर पर हमला कर दिया। इस हमले में शेख मुजीबुर रहमान, उनकी पत्नी, उनके तीन बेटे, और अन्य परिवार के सदस्यों की हत्या कर दी गई।
इस दुखद घटना ने बांग्लादेश को गहरा आघात पहुँचाया और देश ने अपने संस्थापक नेता को खो दिया। शेख मुजीबुर रहमान की मृत्यु के बाद, बांग्लादेश में कई वर्षों तक राजनीतिक अस्थिरता बनी रही। उनकी हत्या के पीछे के षड्यंत्रकारियों को बाद में सजा दी गई, लेकिन इस त्रासदी ने बांग्लादेश के इतिहास पर एक गहरा प्रभाव छोड़ा।
शेख हसीना, जो शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी हैं, 1975 के सैन्य विद्रोह के समय देश में नहीं थीं। वह अपनी छोटी बहन शेख रेहाना के साथ पश्चिम जर्मनी में थीं, जहां उनके पति, डॉ. वाजेद मिया, एक वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत थे। इस कारण, वे दोनों इस नरसंहार से बच गईं।